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સંત નારાયણ ગુરુજી

#संत_नारायण_गुरु_जयंती

एकात्मता के पुजारी पू. नारायण गुरु / जन्म जयंती 20 अगस्त

 

हिन्दू धर्म विश्व का सर्वश्रेष्ठ धर्म है; पर छुआछूत और ऊंचनीच जैसी कुरीतियों के कारण हमें नीचा भी देखना पड़ता है। इसका सबसे अधिक प्रकोप किसी समय केरल में था। इससे संघर्ष कर एकात्मता का संचार करने वाले श्री नारायण गुरु का जन्म 1856 ई. में तिरुअनंतपुरम् के पास चेम्बा जनती कस्बे में ऐजवा जाति के श्री मदन एवं श्रीमती कुट्टी के घर में हुआ था। समाज सुधार के अगले चरण के रूप में 100 से अधिक मंदिरों से उन्होंने मदिरा एवं पक्षीबलि से जुड़े देवताओं की मूर्तियां हटवा कर शिव, गणेश और सुब्रह्मण्यम की मूर्तियां स्थापित कीं।

 

उन्होंने नये मंदिर भी बनवाये, जो उद्यान, विद्यालय एवं पुस्तकालय युक्त होते थे। इनके पुजारी तथाकथित छोटी जातियों के होते थे; पर उन्हें तंत्र, मंत्र एवं शास्त्रों का नौ साल का प्रशिक्षण दिया जाता था। मंदिर की आय का उपयोग विद्यालयों में होता था। दिन भर काम में व्यस्त रहने वालों के लिए रात्रि पाठशालाएं खोली गयीं। अनेक तीर्थों में अनुष्ठानों की उचित व्यवस्था कर पंडों द्वारा की जाने वाली ठगाई को बंद किया।

 

बरकला की शिवगिरी पहाड़ी पर उन्होंने ‘शारदा मठम्’ नामक वैदिक विद्यालय एवं सरस्वती मंदिर की स्थापना की। इसी प्रकार अलवै में ‘अद्वैत आश्रम’ बनाया। स्वामी जी ने सहभोज, अंतरजातीय विवाह तथा कर्मकांड रहित सस्ते विवाहों का प्रचलन किया। बाल विवाह तथा वयस्क होने पर कन्या के पिता द्वारा दिये जाने वाले भोज को बंद कराया। उन्होंने अपने विचारों के प्रसार हेतु ‘विवेक उदयम्’ पत्रिका प्रारम्भ की।

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