बचपन से ही हमें स्कूलों में पढ़ाया गया है कि प्रकाश की गति खोज…… डेनमार्क के खगोलविद ओले क्रिस्टेंसेन रोमर ने की थी.

 

साथ ही कहा जाता है कि… रोमर से पहले गैलीलियो और न्यूटन जैसे महान वैज्ञानिकों ने काफी प्रयास के बाद भी प्रकाश के वेग को नहीं जान पाए थे.

 

हालांकि, गैलीलियो इतना तो समझ गए थे कि ब्रह्मांड में प्रकाश की गति सबसे तेज है लेकिन वे ये कभी नहीं जान पाए कि वास्तव में प्रकाश की गति है कितनी ???

 

अंततः…. रोमर ने पहली बार 1676 में प्रकाश का वेग निर्धारित किया था.

 

जबकि, वास्तविकता काफी चौंकाने वाली है.

 

क्योंकि, आधुनिक समय में महर्षि सायण, जो वेदों के महान भाष्यकार थे , ने 14वीं सदी में प्रकाश की गति की गणना कर डाली थी…

जिसका आधार ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 50 वें सूक्त का चौथा श्लोक था.

 

असल में ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 50 वें सूक्त का चौथा श्लोक कहता है….

 

तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य ।

विश्वमा भासि रोचनम् ॥

-ऋग्वेद 1. 50 .4

 

अर्थात… हे सूर्य…

तुम तीव्रगामी एवं सर्वसुन्दर तथा प्रकाश के दाता और जगत् को प्रकाशित करने वाले हो.

 

उपरोक्त श्लोक पर टिप्पणी करते हुए महर्षि सायण ने निम्न श्लोक प्रस्तुत किया था…

 

तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते द्वे च योजने एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते॥

-सायण ऋग्वेद भाष्य 1. 50 .4

 

अर्थात, आधे निमेष में 2202 योजन का मार्गक्रमण करने वाले प्रकाश तुम्हें नमस्कार है.

 

इस उपरोक्त श्लोक से हमें प्रकाश के आधे निमिष में 2202 योजन चलने का पता चलता है.

 

अब हम समय की ईकाई निमिष तथा दूरी की ईकाई योजन को आधुनिक वर्तमान इकाईयों में परिवर्तित कर सकते है.

 

किन्तु, उससे पूर्व हम प्राचीन समय तथा दूरी की इन इकाईयों के मान को जान लेते हैं.

 

इस बारे में हमारी मनुस्मृति कहती है…

 

निमेषे दश चाष्टौ च काष्ठा त्रिंशत्तु ताः कलाः |

त्रिंशत्कला मुहूर्तः स्यात् अहोरात्रं तु तावतः || ……..मनुस्मृति 1-64

 

इस तरह मनुस्मृति 1-64 के अनुसार

पलक झपकने के समय को 1 निमिष कहा जाता है !

18 निमीष = 1 काष्ठ;

30 काष्ठ = 1 कला;

30 कला = 1 मुहूर्त;

30 मुहूर्त = 1 दिन व् रात (लगभग 24 घंटे )

 

अतः एक दिन (24 घंटे) में निमिष हुए :

24 घंटे = 30x30x30x18= 4,86,000 निमिष

 

जबकि, आधुनिक गिनती की इकाई के हिसाब से 24 घंटे में सेकेंड हुए …

24x60x60 = 86,400 सेकंड

 

इस तरह….

 

86,400 सेकंड =4,86,000 निमिष

 

अतः 1 सेकंड में निमिष हुए :

 

1 निमिष = 86400 /486000 = 0.17778 सेकंड

 

अंततः…. 1/2 निमिष = 0.17778/2 = 0.08889 सेकंड

 

इसी तरह अगर हम योजन की बात करें तो….

श्री मद्भागवतम 3.30.24, 5.1.33, 5.20.43 आदि के अनुसार

 

1 योजन = 8 मील लगभग

 

तो, 2202 योजन = 8 x 2202 = 17,616 मील

 

अब हम अपने ऋग्वेद में उल्लेखित प्रकाश की गति को यदि आधुनिक गणना पद्धति में बिठाते हैं तो… हम पाते हैं कि….

 

सूर्य प्रकाश 1/2 (आधे) निमिष में 2202 योजन चलता है…. अर्थात,

0.08889 सेकंड में 17, 616 मील चलता है.

 

अर्थात, 0.08889 सेकंड में प्रकाश की गति = 17,616 मील

 

तो, 1 सेकेंड में = 17,616 / 0.08889 = 1,98,177 मील (3,18,934.966 किलोमीटर) लगभग

 

तथा, हैरानी की बात है कि आज की आधुनिकतम विज्ञान भी प्रकाश गति को…. 1,86,000 मील (3,18,934.966 किलोमीटर) प्रति सेकंड ही बताती है.

 

कहने का मतलब है कि…. खगोल विज्ञान के जिस ज्ञान को आधुनिकतम विज्ञान ने 1676 में खोजा और बताया …

वो ज्ञान तो हमारे ऋग्वेद में हजारों लाखों साल पहले से ही उल्लेखित है.

 

इसका मतलब हुआ कि…. जिस समय ये पश्चिमी सभ्यता के लोग जंगलों में नंग धड़ंग रहते थे….

और, चूहे बिल्ली आदि मार कर खाया करते थे….

 

उस समय हमारे विद्वान ऋषि-मुनि खगोलशास्त्र और विज्ञान में अंतरिक्ष की गहराइयाँ एवं प्रकाश की गति नाप रहे थे…!

 

क्योंकि, हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि ऋग्वेद को निर्विवाद रूप से मानव सभ्यता का सबसे प्राचीन ग्रंथ माना जाता है.

 

तो, हमारी ऐसी अनमोल उपलब्धियों के कारण हमें अपने धर्मग्रंथों तथा अपने सनातन धर्म पर आखिर क्यों गर्व नहीं होना चाहिए ????

 

जय श्री राम, जय श्री हनुमान, हरि गोविंदा, जय सनातन संस्कृति ????

(साभार)

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